होली - बुराई पर अच्छाई की जीत का
त्योहार
होली भारत के सबसे पुराने पर्वों
में से एक है। होली बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार है. होली में जितना महत्व
रंगों का है उतना ही महत्व होलिका दहन का भी है. क्योंकि ये वही दिन होता है जब आप
अपनी कोई भी कामना पूरी कर सकते हैं किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते
हैं, और इस बार तो ये मुहूर्त बेहद खास है ।
होली की हर कथा में एक समानता है कि
उसमें ‘असत्य पर सत्य की विजय’ और ‘दुराचार पर सदाचार की विजय’ का उत्सव मनाने की
बात कही गई है। इस प्रकार होली मुख्यतः आनंदोल्लास तथा भाई-चारे का त्यौहार है। यह
लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत, सदाचार की दुराचार पर जीत व समाज
में व्याप्त समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन
लोग पुरानी कटुता व दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर ये दोस्त
बन जाते हैं।
होलिका पूजन के समय सभी को एक लोटा
जल, कुँकू, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूँग, बताशे, गुलाल और
नारियल आदि से पूजन करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि
प्रज्ज्वलित कर दी जाती है। अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया
जाता है। होलिका के चारों ओर कच्चे सूत को सात या तीन परिक्रमा करते हुए लपेटा
जाता है। तत्पश्चात लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके
होलिका को समर्पित किया जाता है। कँकू, चावल व पुष्प का पूजा में उपयोग किया जाता
है। सुगंधित फूलों का प्रयोग कर पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करके पूजन के बाद
जल से अर्ध्य दिया जाता है।
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नाम
का एक अत्यन्त बलशाली एवं घमण्डी राक्षस अपने को ही ईश्वर मानने लगा था।
हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।
हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से
कुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर
की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह
आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को मारने के
उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आग में बैठने पर
होलिका तो जल गई परंतु ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच गये।
इस प्रकार होलिका के विनाश तथा
भक्त प्रह्लाद की प्रभु के प्रति अटूट भक्ति एवं निष्ठा के प्रसंग की याद दिलाता
है यह महान पर्व। होली का पर्व हमारे अन्तरूकरण में प्रभु प्रेम तथा प्रभु भक्ति
के अटूट विश्वास को निरन्तर बढ़ाने का त्योहार है। होली पूरे देश में एक समान
हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है बस इसको मनाने के तरीके हर जगह अलग होते हैं.
ब्रज, मथुरा और बरसाना की होलियां तो देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध
हैं. होली के दिन जैसे पूरा देश ही रंगो में डूब जाता है. होली एक ऐसा त्यौहार है
जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और बैर भूलकर एक हो जाते हैं. होली का रंग दुश्मनी को
खत्म कर देता है ।
होली के एक दिन पहले लोग रात को
होलिका जलाते हैं जिसमें वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती
है. उसके अगले दिन दुलेंडी मनाई जाती है. दुलेंडी को सभी एक-दूसरे पर गुलाल बरसाते
हैं तथा पिचकारियों से गीले रंग लगाते हैं. पारंपरिक रूप से केवल प्राकृतिक व
जड़ी-बूटियों से निर्मित रंगों का प्रयोग होता है, परंतु आज कल कृत्रिम रंगों ने
इनका स्थान ले लिया है.
आजकल तो लोग जिस किसी के साथ भी शरारत या मजाक करना चाहते
हैं, उसी पर रंगीले झाग व रंगों से भरे गुब्बारे मारते हैं. प्रेम से भरे यह
नारंगी, लाल, हरे, नीले, बैंगनी तथा काले रंग सभी के मन से कटुता व वैमनस्य को धो
देते हैं तथा सामुदायिक मेल-जोल को बढ़ाते हैं. इस दिन सभी के घर पकवान व मिष्टान
बनते हैं. लोग एक-दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं और पकवान खाते हैं । मिठाइयां
होली की विशेषता हैं. होली पर भारत में विशेष रुप से गुझियां बनाने की परंपरा है.
गुझिया एक बेहद मीठी और स्वादिष्ट मिठाई होती है । गुझियों के साथ होली के दिन
ठंडाई पीना भी कई जगह रिवाज में शामिल है. ठंडाई एक शीतल पेय है जिसे दूध, भांग,
बादाम मिलाकर बनाया जाता है ।
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