हरियाली
अमावस्या 2016
पर्यावरण के संरक्षण
का महत्व (वृक्षारोपण
प्रथा)
श्रावण
कृष्ण अमावस्या को
हरियाली अमावस्या के रूप
में मनाते हैं
यह अमावस्या मंगलवार
को पुष्यनक्षत्र में
मनाई जाएगी तथा
इस दिन पीपल
के वृक्ष की
पूजा कर उसके
फेरे लगाने तथा
मालपुए का भोग
लगाने की परंपरा
है। धार्मिक मान्यता
अनुसार वृक्षों में देवताओं
का वास माना
गया है। पीपल
के वृक्ष में
त्रिदेव यानी ब्रह्मा,
विष्णु व शिव
का वास होता
है। इसलिए हर
व्यक्ति को एक
पौधा अवश्य लगाना
चाहिए। कहते हैं
कि आंवले के
पेड़ में लक्ष्मीनारायण
के विराजमान की
परिकल्पना की गई
है। इसके पीछे
वृक्षों को संरक्षित
रखने की भावना
निहित है। इस
दिन गुड़ व
गेहूं की धानि
का प्रसाद बांटा
जाता है।
यह
शिव-पार्वती पूजन
का बड़ा पर्व
दिवस है। पर्यावरण
को संरक्षित करने
की दृष्टि से
ही पेड़ पौधों
में ईश्वरीय रूप
को स्थान दे
कर उनकी पूजा
का विधान बताया
गया है। जल
में वरुण देवता
की परिकल्पना कर
नदियों व सरोवरों
को स्वच्छ व
पवित्र रखने की
बात कही गई
है। वायु मंडल
की शुचिता के
लिए वायु को
देवता माना गया
है।
इस दिन
नदियों व जलाशयों
के किनारे स्नान
के बाद भगवान
का पूजन-अर्चन
करने के बाद
शुभ मुहूर्त में
वृक्षों को रोपा
जाता है। इसके
तहत शास्त्रों में
विशेष कर आम,
आंवला, पीपल, वट वृक्ष
और नीम के
पौधों को रोपने
का विशेष महत्व
बताया गया है।
पर्यावरण को शुद्ध
बनाए रखने के
लिए ही हरियाली
अमावस्या के दिन
वृक्षारोपण करने की
प्रथा बनी। अमावस्या
को मुख्यतः दिवंगत
परिजनों एवं पितृदेवों
का दिन माना
जाता है।
इस
दिन दान-परोपकार
एवं पूजन आदि
किए जाते हैं।
हरियाली अमावस्या के दिन
पौधा लगाना शुभ
व सौभाग्यवर्धक होता
है। आरोग्य
प्राप्ति के लिए
नीम का, संतान
के लिए केले
का, सुख के
लिए तुलसी का,
लक्ष्मी के लिए
आंवले का पौधा
लगाना चाहिए। हरियाली
अमावस्या का त्योहार
सावन में मनाया
जाता है ।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए
- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र
का वृक्ष लगाएं
। सौभाग्य प्राप्ति
के लिएरू अशोक,
अर्जुन, नारियल, बरगद (वट)
का वृक्ष लगाएं
। पीपल, नीम,
बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा
को लगाएं ।
मेधा वृद्धि प्राप्ति के
लिएरू आंकड़ा, शंखपुष्पी,
पलाश, ब्राह्मी, तुलसी
लगाएं. ।
सुख प्राप्ति के लिएरू
नीम, कदम्ब, धनी
छायादार वृक्ष लगाएं । आनन्द
प्राप्ति के लिएरू
हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा,
गुलाब लगाएं ।
हरियाली
अमावस्या का मुख्य
उद्देश्य लोगों को प्रकृति
के करीब लाना
है। धार्मिक ग्रंथों
के अनुसार अमावस्या
का विशेष महत्व
होता है। इस
दिन किये गए
दान-पुण्य से
अमोघ फल की
प्राप्ति होती है
एव पितरों को
मोक्ष की प्राप्ति
होती है। सूर्य
और चन्द्रमा दोनों
ग्रह अमावस्या के
दिन एक ही
राशि में आ
जाते हैं यानी
चन्द्रमा और सूर्य
जब तक दोनों
एक राशि में
रहते हैं तब
तक ही अमावस्या
रहती है। पेड़-पौधों
का सानिध्य हमारे
दैनिक तनाव और
उलझनों को कम
करता है। हरियाली
अमावस्या पर प्रकृति
के प्रतिनिधि के
रूप मे वृक्षों
की पूजा की
जाती है।
मनु
स्मृति के अनुसार
परमात्मा ने वृक्ष
का सृजन परोपकार
एवम जनकल्याण के
लिए किया है।
पीपल, बरगद, नीम,
तुलसी, केला आदि
वृक्षों में देवता
का वास बताया
गया है। मान्यता
के अनुसार पीपल
वृक्ष के मूल
भाग में जल,
दूध अर्पित करने
से पितृ गण
तृप्त होते है
एवम् पीपल के
मूल भाग में
तिल अथवा सरसों
के तेल का
दीप प्रज्वलित करने
से शनि की
ढैया शांत होती
है। केला,
भगवान विष्णु जी
के पूजन के
लिए उत्तम माना
गया है। गुरूवार
को केले के
पूजन से भगवान
विष्णु जी प्रसन्न
होते है।
ऐसी
मान्यता है कि
भगवान विष्णु जी
केले में विराजमान
रहते है। श्रावण
अमावस्या का शिवभक्तों
के लिए बड़ा
महत्व है. दस
दिन शिवजी की
पूजा से विशेष
फलों की प्राप्त
होती है. इस
दिन शिव का
पितृ रूप में
विधि-विधान पूर्वक
पूजन करने तथा
अपनी इच्छा अनुसार
भोग लगाने से
शिव प्रसन्न होकर
मनचाहा वरदान देते हैं.
गांवों में इस
दिन मेले लगाए
जाते हैं तो
कहीं दंगल का
आयोजन भी किया
जाता है।
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