.पतंग - मान्यताओं,
परम्पराओं व अंधविश्वासों
का इतिहास
पतंग
एक धागे के
सहारे उड़ने वाली
वस्तु है जो
धागे पर पडने
वाले तनाव पर
निर्भर करती है।
पतंग तब हवा
में उठती है
जब हवा का
प्रवाह पतंग के
उपर और नीचे
से होता है,
जिससे पतंग के
उपर कम दबाव
और पतंग के
नीचे अधिक दबाव
बनता है। यह
विक्षेपन हवा की
दिशा के साथ
क्षैतिज खींच भी
उत्पन्न करता है।
पतंग का लंगर
बिंदु स्थिर या
चलित हो सकता
है। प्राचीन काल
से ही इंसान
की यह इच्छा
रही कि वह
मुक्त आकाश में
उड़े। मानव की
इसी इच्छा ने
पतंग की उत्पत्ति
के लिए प्रेरणा
का काम किया।
कभी मनोरंजन के
तौर पर उड़ाई
जाने वाली पतंग
आज पतंगबाजी के
रूप में एक
रिवाज, परंपरा और त्योहार
का पर्याय बन
गई है।
पतंग
विश्व के कई
देशों में उड़ाई
जाती हैं, किंतु
भारत के कई
राज्यों में यह
बहुत बड़ी संख्या
में बच्चों, बूढ़ों
और जवानों द्वारा
विभिन्न पर्वों और त्योहारों
पर उड़ाई जाती
है। आज भी
महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर
प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली
आदि में पतंग
उड़ाने के लिए
समय निर्धारित है।
अलग-अलग राज्यों
में पतंगों को
अलग-अलग नामों
से जाना जाता
है।
आधुनिक समय
में पतंग के
प्रति लोगों का
प्रेम कम हो
गया है। पहले
पतंगबाजी के मुकाबले
बहुत होते थे,
किंतु अब पहले
जैसे पतंगबाज दिखाई
नहीं देते और
न ही उनके
मुकाबले। एक
समय में मनोरंजन
के प्रमुख साधनों
में से एक,
लेकिन समय के
साथ-साथ पतंगबाजी
का शौक भी
अब कम होता
जा रहा है।
एक तो समय
का अभाव और
दूसरा खुले स्थानों
की कमी जैसे
कारणों के चलते
इस कला का,
जिसने कभी मनुष्य
की आसमान छूने
की महत्वकांक्षा को
साकार किया था
।
राज्य
में हर साल
मकर संक्रांति के
दिन परंपरागत रूप
से पतंगबाजी प्रतियोगिता
का आयोजन किया
जाता है जिसमें
राज्य के पूर्व
दरबारी पतंगबाजों के परिवार
के लोगों के
साथ-साथ विदेशी
पतंगबाज भी भाग
लेते हैं।
पतंग
उड़ाने का शौक
चीन, कोरिया और
थाइलैंड समेत दुनिया
के कई अन्य
भागों से होकर
भारत में पहुंचा।
देखते ही देखते
यह शौक भारत
में एक शगल
बनकर यहां की
संस्कृति और सभ्यता
में रच-बस
गया। खाली समय
का साथी बनी
पतंग को खुले
आसमान में उड़ाने
का शौक बच्चों
से लेकर बूढ़ों
तक के सिर
चढ़कर बोलने लगा।
भारत में पतंगबाजी
इतनी लोकप्रिय हुई
कि कई कवियों
ने इस साधारण
सी हवा में
उड़ती वस्तु पर
भी कविताएँ लिख
डालीं।
आज
के भागमभाग पूर्ण
जीवन में खाली
समय की कमी
के कारण यह
शौक कम होता
जा रहा है,
लेकिन यदि अतीत
पर दृष्टि डालें
तो हम पाएँगे
कि इस साधारण
सी पतंग का
भी मानव सभ्यता
के विकास में
कितना महत्वपूर्ण योगदान
है। आसमान में
उड़ने की मनुष्य
की आकांक्षा को
तुष्ट करने और
डोर थामने वाले
की उमंगों को
उड़ान देने वाली
पतंग दुनिया के
विभिन्न भागों में अलग
अलग मान्यताओं परम्पराओं
तथा अंधविश्वास की
वाहक भी रही
है। मानव की
महत्वाकांक्षा को आसमान
की ऊँचाईयों तक
ले जाने वाली
पतंग कहीं शगुन
और अपशकुन से
जुड़ी है तो
कहीं ईश्वर तक
अपना संदेश पहुंचाने
के माध्यम के
रूप में प्रतिष्ठित
है।
कोरिया
में पतंग पर
बच्चे का नाम
और उसके जन्म
की तिथि लिखकर
उड़ाया जाता था
ताकि उस वर्ष
उस बच्चे से
जुड़ा दुर्भाग्य पतंग
के साथ ही
उड़ जाए। थाईलैंड में बारिश
के मौसम में
लोग भगवान तक
अपनी प्रार्थना पहुंचाने
के लिये पतंग
उड़ाते थे जबकि
कटी पतंग को
उठाना अपशकुन माना
जाता था। आज
भी चीन में
पतंग उड़ाने का
शौक कायम है।
हर
वर्ष 14 जनवरी को मकर
संक्रांति सूर्य के उत्तरायण
होने के अवसर
पर अंतरराष्ट्रीय पतंग
महोत्सव का आयोजन
होता है ।
चीन, नीदरलैंड, यूएसए,
ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्राजील, इटली
और चिली आदि
देशों से भी
पतंगबाजों की फौज
यहाँ आती है।
पहले कागज को
चैकोर काटकर पतंगें
बनाई जाती थीं,
किंतु आज एक
से बढ़कर एक
डिजाइन, आकार, आकृति एवं
रंगों वाली भिन्न
प्रकार की मोटराइज्ड
एवं फाइबर ग्लास
पतंगें बाजार में मौजूद
हैं, जिन्हें उड़ाने
का एहसास अपने
आप में अनोखा
और सुखद होता
है। इन पतंगों
की माँग भी
बहुत ज्यादा है
और ये बहुत
आकर्षक भी होती
हैं।
पेंच
लड़ाना - दो पतंगों
के पेंच की
लड़ाई में दूसरी
पतंग की डोर
को काटकर गिराने
के खेल का
आनंद और रोमांच
उसमें भाग लेने
वाले ही महसूस
कर सकते हैं।
पेंच की लड़ाई
में कई हुनर
होते हैं। पतंग
का संतुलित होना,
पतंगबाज का अनुभवी
होना, दूसरे की
डोर काटने के
लिए खुद की
पतंग को खूब
तेजी से अपनी
ओर खींचते जाना
या बहुत तेजी
से ढील देते
जाना और साथ
में झटका या
उचके देना। डोर
को फुर्ती से
लपेटने वाले तथा
जरूरत पड़ने पर
निर्बाध रूप से
छोड़ते जाने वाले
असिस्टेंट की भूमिका
भी इस समय
बहुत ही खास
होती है। जैसे
ही एक डोर
कटती है, उसे
थामने वाले हाथों
को मालूम पड़
जाता है, तनाव
की जगह ढीलापन।
उसकी कटी पतंग
निस्सहाय-सी जमीन
की दिशा में
डूबने लगती है।
चेहरा उतर जाता
है। जीतने वाले
समूह की चीखें
आकाश गूँजा देती
हैं- वह काटा,
वो काटा, वो
मारा वे आदि।
दो
पतंगों की लड़ाई
में धागे या
डोर का बहुत
महत्व है। सूत
का यह धागा
न केवल मजबूत
होना चाहिए, बल्कि
उसकी सतह के
खुरदरेपन में दूसरे
धागे को काटने
की पैनी क्षमता
होना चाहिए। इस
खास धागे को
मांजा कहते हैं।
इसे बनाने का
तरीका मेहनत भरा
और खतरनाक है।
एक खास किस्म
की लोई तैयार
करते हैं, जिसमें
चावल का आटा,
आलू, सरेस, पिसा
हुआ बारीक काँच
का बुरादा और
रंग मिला रहता
है। इसे हाथों
में रखकर, दो
खंभों के बीच
बाँधे गए सूत
के सफेद धागों
पर उक्त लोई
की अनेक परतें
चढ़ाई जाती हैं
और इस प्रकार
तेज और खतरनाक
मांजा तैयार किया
जाता है।
भारत
के हैदराबाद और
पाकिस्तान के लाहौर
में पतंगबाजी का
खेल बड़े उत्साह
के साथ खेला
जाता था। आज
भी महाराष्ट्र, गुजरात,
कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान
और दिल्ली आदि
में पतंग उड़ाने
के लिए समय
निर्धारित है। अलग-अलग राज्यों
में पतंगों को
अलग-अलग नामों
से जाना जाता
है। उत्तर भारत
के लोग रक्षा
बंधन और स्वतंत्रता
दिवस वाले दिन
खूब पतंग उड़ाते
हैं। इस दिन
लोग नीले आसमान
में अपनी पतंगें
उड़ाकर आजादी की
खुशी का इजहार
करते हैं।
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