. सिंहस्थ -2016 - 3. पहला शाही स्नान - 22 अप्रैल 2016
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु आ जाता है, उस समय उज्जैन में महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. जिसे देशभर में सिंहस्थ मेले के नाम से जाना जाता है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ‘उज्जैन’ को मोक्ष की नगरी कहा जाता है । महाकाल की नगरी उज्जैन में 12 साल के बाद सिंहस्थ महाकुंभ शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ मेले का आयोजन किया जा रहा है ।
सिंहस्थ मेले का महत्व - 22 अप्रैल से 21 मई तक चलेगा सिंहस्थ महाकुंभ । एक अनुमान के अनुसार 5 करोड़ श्रद्धालु और 5 लाख साधु-संतों के आने की उम्मीद है । पहला शाही स्नान 22 अप्रैल, दूसरा 9 मई और तीसरा 21 मई को होगा । 150 देशों के प्रतिनिधियों एवं
देश के सभी धर्म-प्रमुखों को आमंत्रित किया गया है । सिंहस्थ मेले का महत्व मोक्ष की प्राप्ति से है ।
कुम्भ-पर्व सत्कर्म के द्वारा मनुष्य को इस लोक में शारीरिक सुख देने वाला और जन्मान्तरों में उत्कृष्ट सुखों को देने वाला है। विश्व प्रसिद्ध सिंहस्थ महाकुंभ एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापर्व है । आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण की अनुभूति होती है।
सिंहस्थ महाकुंभ महापर्व पर देश और विदेश के भी साधु-महात्माओं, सिद्ध-साधकों और संतों का आगमन होता है। इनके सानिध्य में आकर लोग अपने लौकिक जीवन की समस्याओं का समाधान खोजते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों में मोक्ष ही अंतिम मंजिल है। ऐसे महापर्वों में ऋषिमुनि अपनी साधना छोड़कर जनकल्याण के लिए एकत्रित होते हैं।
वे अपने अनुभव और अनुसंधान से प्राप्त परिणामों से जिज्ञासाओं को सहज ही लाभान्वित कर देते हैं। इस सारी पृष्ठभूमि का आशय यह है कि कुंभ-सिंहस्थ महाकुंभ जैसे आयोजन चाहे स्वरस्फूर्त ही हों, लेकिन वह उच्च आध्यात्मिक चिन्तन का परिणाम है और उसका सुविचारित ध्येय भी है। कुंभ पर्व में जाने वाला मनुष्य स्वयं दान-होमादि सत्कर्मों के फलस्वरूप अपने पापों को नष्ट करता है ।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष होने पर बृहस्पति सिंह राशि पर, सूर्य मेष राशि पर तथा चन्द्रमा तुला राशि पर हो, साथ ही स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा तिथि व्यतीपात योग हो तो उज्जैन में शिप्रा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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