शरद
पूर्णिमा - लक्ष्मी कृपा से
धन और वैभव
का योग
आश्विन
मास की पूर्णिमा
को शरद पूर्णिमा
कहा जाता है।
नारदपुराण के अनुसार
शरद पूर्णिमा की
रात मां लक्ष्मी
अपने हाथों में
वर और अभय
लिए घूमती हैं।
इस दिन वह
अपने जागते हुए
भक्तों को धन-वैभव का
आशीष देती हैं।
इस पर्व को
कोजागरी पूर्णिमा के नाम
से भी जाना
जाता है। इस
दिन मां लक्ष्मी
की पूजा करनी
चाहिए। शाम के
समय चन्द्रोदय होने
पर चांदी, सोने
या मिट्टी के
दीपक जलाने चाहिए।
इस दिन घी
और चीनी से
बनी खीर चन्द्रमा
की चांदनी में
रखनी चाहिए। जब
रात्रि का एक
पहर बीत जाए
तो यह भोग
लक्ष्मी जी को
अर्पित कर देना
चाहिए। एक दंतकथा
के कथानुसार एक
साहूकार की दो
बेटियां थी और
दोनों पूर्णिमा का
व्रत रखती थीद्य
बड़ी बेटी ने
विधिपूर्वक व्रत को
पूर्ण किया और
छोटी ने व्रत
को अधूरा ही
छोड़ दिया। फलस्वरूप
छोटी लड़की के
बच्चे जन्म लेते
ही मर जाते
थे। एक बार
बड़ी लड़की के
पुण्य स्पर्श से
उसका बालक जीवित
हो गया और
उसी दिन से
यह व्रत विधिपूर्वक
पूर्ण रूप से
मनाया जाने लगा।
इस दिन माता
महालक्ष्मी जी की
पूजा की जाती
है। मान्यता है
कि इस दिन
विधिपूर्वक व्रत करने
से सभी मनोकामनाएं
पूर्ण होती है।
शरद पूर्णिमा की
रात को सबसे
उज्जवल चांदनी छिटकती है।
चांद की रोशनी
में सारा आसमान
धुला नजर आता
है। ऐसा लगता
है मनो बरसात
के बाद प्रकृति
साफ और मनोहर
हो गयी है।
माना जाता है
कि इसी धवल
चांदनी में मां
लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के
लिए आती हैं।
शास्त्रों के अनुसार
शरद पूर्णिमा की
मध्य रात्रि के
बाद मां लक्ष्मी
अपने वाहन उल्लू
पर बैठकर धरती
के मनोहर दृश्य
का आनंद लेती
हैं। साथ ही
माता यह भी
देखती हैं कि
कौन भक्त रात
में जागकर उनकी
भक्ति कर रहा
है। इसलिए शरद
पूर्णिमा की रात
को कोजागरा भी
कहा जाता है।
कोजागरा का शाब्दिक
अर्थ है कौन
जाग रहा है।
मान्यता है कि
जो इस रात
में जगकर मां
लक्ष्मी की उपासना
करते हैं मां
लक्ष्मी की उन
पर कृपा होती
है। शरद पूर्णिमा
के विषय में
ज्योतिषीय मत है
कि जो इस
रात जगकर लक्ष्मी
की उपासना करता
है उनकी कुण्डली
में धन योग
नहीं भी होने
पर माता उन्हें
धन-धान्य से
संपन्न कर देती
हैं। द्वापर युग
में भगवान श्री
कृष्ण का जन्म
हुआ तब मां
लक्ष्मी राधा रूप
में अवतरित हुई।
भगवान श्री कृष्ण
और राधा की
अद्भुत रासलीला का आरंभ
भी शरद पूर्णिमा
के दिन माना
जाता है। शैव
भक्तों के लिए
शरद पूर्णिमा का
विशेष महत्व है।
मान्यता है कि
भगवान शिव और
माता पार्वती के
पुत्र कुमार कार्तिकेय
का जन्म भी
शरद पूर्णिमा के
दिन हुआ था।
इसी कारण से
इसे कुमार पूर्णिमा
भी कहा जाता
है। पश्चिम बंगाल
और उड़ीसा में
इस दिन कुमारी
कन्याएं प्रातः स्नान करके
सूर्य और चन्द्रमा
की पूजा करती
हैं।
माना जाता
है कि इससे
योग्य पति प्राप्त
होता है। जो
जागता है, उसे
मिलती है लक्ष्मी
कृपा । शरद
पूर्णिमा की रात
में जागरण कर
इंद्र और महालक्ष्मी
की पूजा की
जाती है। मान्यता
है कि इस
रात महालक्ष्मी धरती
पर भ्रमण करती
हैं। लक्ष्मी यह
देखती हैं और
पूछती हैं कि
को जागृति यानी
कौन जाग रहा
है। जो जागता
है, उसे लक्ष्मी
धन और वैभव
प्रदान करती हैं।
लक्ष्मी द्वारा को-जागृति’
अर्थात कौन जाग
रहा है, ऐसा
कहने के कारण
ही इस व्रत
का नाम कोजागर
व्रत प्रसिद्ध हुआ
है। शरद पूर्णिमा
के दिन - इस
दिन सुबह जल्दी
उठें और स्नान
करें। ऐरावत हाथी
पर विराजमान इंद्र
और महालक्ष्मी की
मूर्ति या फोटो
की पूजा करें। पूरे
दिन उपवास करें।
अपनी इच्छा के
अनुसार फलाहार और दूध
का सेवन कर
सकते हैं। रात में
घी के 101 दीपक
की पूजा करें
और उन्हें जलाएं।
इसके बाद इन
दीपों को मंदिरों
में, उद्यानों, तुलसी
और पीपल के
नीचे रखें। रात में
श्रीसूक्त या लक्ष्मीस्तोत्र
का पाठ करें
और जागरण करें।
अगली सुबह देवराज
इंद्र का पूजन
करें। ब्राह्मण और
जरूरतमंद लोगों को घी-शक्कर युक्त खीर
का प्रसाद वितरित
करें। सामर्थ्य के
अनुसार धन और
कपड़ों का दान
करें। शरद पूर्णिमा
व्रत से एक
निर्धन से प्रसन्न
हुईं लक्ष्मी - शरद
पूर्णिमा से जुड़ी
एक कथा प्रचलित
है, उस कथा
के अनुसार पुराने
समय में एक
निर्धन ब्राह्मण था। उसकी
पत्नी धन और
वैभव चाहती थी,
इसी कारण पति-पत्नी के बीच
हमेशा ही झगड़ा
होता था। पत्नी
ताने देती कि
मैंने गरीब के
घर में क्यों
शादी कर ली।
इन्हीं झगड़ों के कारण
एक दिन बात
ज्यादा बिगड़ गई।
ब्राह्मण नाराज होकर वन
में चला गया।
उस दिन आश्विन
मास की पूर्णिमा
थी। वन में
ब्राह्मण को कुछ
नागकन्याएं मिलीं। उन्होंने ब्राह्मण
का कष्ट जाना
और कोजागर व्रत
करने को कहा।
ब्राह्मण ने श्रद्धा
से व्रत किया।
इंद्र और लक्ष्मी
की पूजा की
और रात्रि जागरण
किया। इस व्रत
के शुभ प्रभाव
से निर्धन ब्राह्मण
कुछ ही दिनों
में धनवान हो
गया। चांदनी में
खीर - इस रात
को चंद्रमा की
रोशनी में खीर
बनाने की परंपरा
है। मान्यता है
कि चंद्र की
किरणों के साथ
बरसने वाला अमृत
खीर में उतरता
है। आधी रात
में भगवान को
इसी खीर का
भोग लगाया जाता
है और आरती
के बाद यही
खीर का प्रसाद
सभी को वितरित
किया जाता है।
चंद्रमा के प्रकाश
में सूई में
धागा पिरोने की
प्रथा भी है।
मान्यता है कि
ऐसा करने से
नेत्र ज्योति बढ़ती
है। मानसिक शक्ति
बढ़ती है इस
पूजा करने से
- चंद्रमा की स्थिति
का सीधा असर
पृथ्वी पर पड़ता
है। पूर्णिमा पर
चंद्रमा अपनी पूर्ण
कलाओं के साथ
दिखाई देता है।
इस कारण समुद्र
में ज्वार भी
आता है। वनस्पतियों
पर भी चंद्र
का गहरा असर
होता है और
वे तेजी से
बढ़ती है। ज्योतिष
में चंद्र को
मन का देवता
कहा गया है।
मान्यता है कि
आश्विन मास की
पूर्णिमा को चन्द्र
की किरणों के
साथ अमृत बरसता
है। चंद्र के
प्रकाश में जागरण
करने और जप-तप-ध्यान
करने से सफलता
मिलती है। जब
मन स्वस्थ रहता
है तो सारे
काम अच्छे होते
हैं। इस रात
जागरण करने से
हमारी मानसिक शक्ति
बढ़ती है। हमारे
विचार सकारात्मक होते
हैं। पौराणिक एवं प्रचलित
कथा - एक कथा
के अनुसार एक
साहुकार को दो
पुत्रियां थीं। दोनो
पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत
रखती थीं। लेकिन
बड़ी पुत्री पूरा
व्रत करती थी
और छोटी पुत्री
अधूरा व्रत करती
थी। इसका परिणाम
यह हुआ कि
छोटी पुत्री की
संतान पैदा होते
ही मर जाती
थी। उसने पंडितों
से इसका कारण
पूछा तो उन्होंने
बताया की तुम
पूर्णिमा का अधूरा
व्रत करती थी,
जिसके कारण तुम्हारी
संतान पैदा होते
ही मर जाती
है। पूर्णिमा का
पूरा व्रत विधिपूर्वक
करने से तुम्हारी
संतान जीवित रह
सकती है। उसने
पंडितों की सलाह
पर पूर्णिमा का
पूरा व्रत विधिपूर्वक
किया। बाद में
उसे एक लड़का
पैदा हुआ। जो
कुछ दिनों बाद
ही फिर से
मर गया। उसने
लड़के को एक
पाटे (पीढ़ा) पर
लेटा कर ऊपर
से कपड़ा ढंक
दिया। फिर बड़ी
बहन को बुलाकर
लाई और बैठने
के लिए वही
पाटा दे दिया।
बड़ी बहन जब
उस पर बैठने
लगी जो उसका
घाघरा बच्चे का
छू गया। बच्चा
घाघरा छूते ही
रोने लगा। तब
बड़ी बहन ने
कहा कि तुम
मुझे कलंक लगाना
चाहती थी। मेरे
बैठने से यह
मर जाता। तब
छोटी बहन बोली
कि यह तो
पहले से मरा
हुआ था। तेरे
ही भाग्य से
यह जीवित हो
गया है। तेरे
पुण्य से ही
यह जीवित हुआ
है। उसके बाद
नगर में उसने
पूर्णिमा का पूरा
व्रत करने का
ढिंढोरा पिटवा दिया। शरद
पूर्णिमा के शुभ
अवसर पर सुबह
उठकर व्रत करके
अपने इष्ट देव
का पूजन करना
चाहिए। इन्द्र और महालक्ष्मी
जी का पूजन
करके घी के
दीपक जलाकर, गंध
पुष्प आदि से
पूजन करना चाहिए।
ब्राह्मणों को खीर
का भोजन कराना
चाहिए और उन्हें
दान दक्षिणा प्रदान
करनी चाहिए। लक्ष्मी
प्राप्ति के लिए
इस व्रत को
विशेष रूप से
किया जाता है।
कहा जाता है
कि इस दिन
जागरण करने वाले
की धन-संपत्ति
में वृद्धि होती
है। इस व्रत
को मुख्य रूप
से स्त्रियों द्वारा
किया जाता है।
उपवास करने वाली
स्त्रियां इस दिन
लकड़ी की चैकी
पर सातिया बनाकर
पानी का लोटा
भरकर रखती हैं।
एक गिलास में
गेहूं भरकर उसके
ऊपर रुपया रखा
जाता है और
गेहूं के 13 दाने
हाथ में लेकर
कहानी सुनी जाती
है।
गिलास
और रुपया कथा
कहने वाली स्त्रियों
को पैर छूकर
दिए जाते हैं।
रात को चन्द्रमा
को अर्घ्य दिया
जाता है और
फिर इसके बाद
भोजन किया जाता
है। इस दिन
मंदिर में खीर
आदि दान करने
का भी विधि-विधान है। इस
दिन विशेष रूप
से तरबूज के
दो टुकड़े करके
रखे जाते हैं।
साथ ही कोई
भी एक ऋतु
का फल और
खीर चन्द्रमा की
चांदनी में रखा
जाता है। ऐसा
कहा जाता है
कि इस दिन
चांद की चांदनी
से अमृत बरसता
है। ऐसे बनाएं
खीर - शरद पूर्णिमा
को देसी गाय
के दूध में
दशमूल क्वाथ, सौंठ,
काली मिर्च, वासा,
अर्जुन की छाल
चूर्ण, तालिश पत्र चूर्ण,
वंशलोचन, बड़ी इलायची,
पिप्पली इन सबको
आवश्यक मात्रा में मिश्री
मिलाकर पकाएं और खीर
बना लें प्
खीर में ऊपर
से शहद और
तुलसी पत्र मिला
दें, अब इस
खीर को ताम्बे
के साफ बर्तन
में रात भर
पूर्णिमा की चांदनी
रात में खुले
आसमान के नीचे
ऊपर से जालीनुमा
ढक्कन से ढक
कर छोड़ दें।
सुबह इस खीर
का सेवन करें।
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