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Showing posts from December, 2014

Gurudwara Guru Gobind Singh ji - Mandi ( H.P.)

गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी, मंडी (हिमाचल प्रदेश) गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी समुद्र स्तर से 2000 फीट की ऊंचाई पर मंडी (हिमाचल प्रदेश) में है । मंडी के राजा सिद्ध सेन ने गुरू गोबिंद सिंह जी को रहने के लिए अपने महल में आमंत्रित किया था पर गुरू जी ने नदी के तट पर ही रहना पसंद किया और नदी के अंदर एक बड़ी चटटान पर गुरू जीे ने अपना दरबार सजाया । आज वहां  एक सुंदर गुरुद्वारा स्थल पर बनाया गया है।  गुरु की कुछ पवित्र अवशेष गुरुद्वारा में संरक्षित किया गया है। वे एक खाट और एक राइफल शामिल हैं। गुरुद्वारा  पाडल साहिब - एक ही नाम के एक पहाड़ी राज्य की मंडी पूर्व राजधानी, अब हिमाचल प्रदेश में एक जिला शहर है। गुरु शहर के बाहर अपने शिविर में खड़ा किया, वहीं गुरु गोबिंद सिंह एक बार अपने घर की महिलाओं के शासक के महल में ठहराया गया, अपने शासक सिध्द सेन के निमंत्रण पर मंडी का दौरा किया।  दो धार्मिक स्थलों, यहां महल और गुरु के शिविर के स्थल पर एक दूसरे के अंदर स्थापित किए गए थे। भीतरी श्राइन तत्कालीन शासक परिवार द्वारा बनाए रखा है। व्यास न...

Guru Govind Singh Ji - Tenth Sikh Guru

श्री गुरू गोबिंदसिंह जी - सिखों के दसवें गुरू श्री गुरू गोबिंदसिंह जी सिखों के दसवें गुरू हैं जिनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1966 को पटना (बिहार) मैं  माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरू तेगबहादुर जी के घर हुआ । पहले गुरूजी का नाम गोविंद राय था और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरूजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरू गोविंद सिंह जी बन गए । उनके बचपन के पाँच साल पटना में ही गुजारे ।  धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरू गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्ािापना की । पाँच प्यारे बनाकर उन्हें गुरू का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं- जहाँ पाचँ सिख इकटठे होंगे, वहीं में निवास करूँगां । उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करने समानता स्ािापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की । दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रहबल से श्री गुरूग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लेखक भाई मनी सिंह जी ने गुरूबाणी को लिखा । गुरूजी रोज गुरूबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरूबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी...

ADHIKMAS -2014

   अधिकमास  - 2014 पुरूषोत्तम मास /खरमास / अधिकमास / मलमास  वह मास है जिस चन्द्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है और इस बार मलमास 16 दिसम्बर दिन सोमवार (प्रातः 4 बजकर 13 मिनट ) से शुरू होकर 13 जनवरी की मध्यरात्रि तक रहेगा । हिन्दू वर्ष में 12 माह होते हैं, लेकिन यह वर्ष करीब 13 माह का होगा । 12 चंद्र मास लगभग 354 दिन का होता है, जिसमें सूर्य की 12 संक्रांतियां होती हैं ।  मान्यता यह है कि मलमास के प्रारम्भ होते ही शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है क्योंकि सूर्य और गुरू  दोनों ग्रहों का मिलान होने के कारण ही मलमास होता है । इस मलमास में दान पुण्य और सेवा करने का बहुत महत्व है जिससे मनुष्य के ग्रहों की शांति और रोग मुक्त होते हैं । मलमास में भगवान शिव व विष्णु देव की स्तुति करने से साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । श्लोक और मंत्र का जप से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है: मंत्र - गोवद्र्धरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम् । गोकुललोत्सववमीशानं गोविंन्दं गोपिकाप्रियम् ।। मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं, उन्हे...

(45) YASHOR SHAKTI PEETH

(45) यशोर शक्तिपीठ यशोर (जैसोर ) शक्तिपीठ ईश्वरीपुर, श्यामनगर, सतखिरा,  जैसोर खुलना, बांग्लादेश में स्थित है । इस स्थान पर सती की बाईं हथेली गिरी थी । इस मंदिर में देवी को यशोेरेश्वरी और भगवान शिव को भैरव ‘‘चांद’’ के रूप में पूजा जाता है । यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के तीसरे सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है ।  यहां आने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं देवी पूर्ण करती है ।

Christmas Tree

Christmas Tree   Tree worship   (dendrolatry) refers to the tendency of many societies throughout history to worship or otherwise mythologize   trees .   Trees have played an important role in many of the world's   mythologies   and   religions , and have been given deep and sacred meanings throughout the ages. Human beings, observing the growth and death of trees, the elasticity of their branches, the sensitivity and the annual decay and revival of their foliage, see them as powerful symbols of growth, decay and resurrection. The most ancient cross-cultural symbolic representation of the   universe 's construction is the   world tree . The image of the   Tree of life   is also a favorite in many mythologies. Various forms of trees of life also appear in folklore, culture and fiction, often relating to   immortality   or   fertility . These often hold cultural and religious significance to the peoples fo...

(44) VISHALKASHI SHAKTI PEETH - VARANASHI

(44) विशालकाशी शक्तिपीठ -  वाराणसी वाराणसी भी विशालकाशी मणिकर्णिका के रूप में जाना जाता है । कुछ लोगों को भी जगह विशालकाशी मणि करनीशक्ति के रूप में मंदिर को संबोधित । यहां पर देवी मां मणिकर्णिका या मणिकर्णी  के रूप में जाना जाता है । विशालकाशी शक्तिपीठ मीर घाट के तट पर गंगा में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है जो कि हिंदू देवी माँ को समर्पित सबसे पवित्र मंदिर है ।  इस स्थान पर देवी की बालियां या आंखें सती वाराणसी के इस पवित्र स्थान पर गिरी थी । वाराणसी के पवित्र भूगोल में छह अंक का प्रतीक कहा जाता है । विश्वकाशी मंदिर का वार्षिक मंदिर त्यौहार में ढलते पखवाड़े के काजली तीज (काला तृतीया) , तीसरे चंद्र दिन (तीज) को मनाया जाता है भाद्रपद । भारतीय बरसात के मौसम के आखिरी महीने में महिलाओं को इस समय चारों ओर काजली कहा जाता है ।  ‘‘कामुक’’ बरसात के मौसम गाने गाते हैं । पवित्र दिन महिलाओं द्वारा भाइयों के कल्याण के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है ।  यह मंदिर विशेष रूप से पानी शरीर भी वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर के साथ जुड़ा हुआ है । इस जगह की मान्य...

(43) VIRAT SHAKTI PEETHA

(43) विराट शक्तिपीठ विराट शक्तिपीठ भरतपुर, पुष्कर के पास राजस्थान में है । यहां देवी अम्बिका और भगवान शिव अमृतेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं । यहां पर मां सती का बायां पैर गिरा गया था  ।  मकर संक्रांति, शरद पूर्णिमा, दीपावली, सोमवती अमावस्या, रामनवमी वाले महत्वपूर्ण त्यौहारों पर उत्सव मनाये जाते हैं । साल में दो नवरात्रि मार्च/अपैल और सितम्बर/अक्टूबर पर भक्तगण उपवास रखते हैं और मिटटी से प्राप्त अन्य 9 दिनों तक नहीं लेेते हैं ।  शिवरात्रि पर भगवान की मूर्ति पर जमानत (एक प्रकार का फल) और दूध से स्नान करवाते हैं । लोग हर दिन फल, दूध, घर की बनी मिठाई का प्रसाद भगवान को भेंट करते हैं ।

(42) Vajeshwari Shakti Peetha

(42) वाजेश्वरी शक्तिपीठ - हिमाचल प्रदेश   वाजेश्वरी शक्तिपीठ़ देवी मंदिर एक हिन्दू मंदिर नागरकोट, कांगड़ा जिले में हिमाचल प्रदेश में स्थित है । यहां पर सती के बांए स्.तन गिरा था ।  मूल मंदिर पांडवों द्वारा नागरकोट गांव में बनाया गया था पर मंदिर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा इसे लूट लिया गया । मोहम्मद गजनी ने सोना और चांदी के बने कई घंटे जो कई टन के थे   मंदिर को 5 बार लूटा और सन् 1905 में मंदिर एक शक्तिशाली भूकंप से नष्ट हो गया और फिर इस सरकार ने बनवाया ।